सोमवार, 5 जनवरी 2009

लेकिन बुद्ध बनना .....


कुछ लम्हें सीप में बंद मोतियाँ,
याद करके आँखों में छलकती मोतियाँ...
गूथ कर इन्हें मुक्ता की माला बना लूँ,
गले में डालकर ह्दय के पास सहेज लूँ।

मन करता है मुक्ताओं को नभ के सितारें बना दूँ,
कभी सोचती हूँ मुट्ठी में बंद कर लूँ..
कभी लगता है रेत पर फैला दूँ,
मुक्त कर दूँ मुक्ताओँ को और बुद्ध बन जाऊँ।

लेकिन बुद्ध बनना .....
रह-रह कर याद आते लम्हों को फिर सीप ....

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

पवित्र प्रेम...

" बादल का एक शफ्फाक तुकड़ा बन
वे मेरी जिंदगी में आएँ....

चंद बूंदे प्यार की बरसाकर
उन्होंने कहाँ लो ये तुम्हारे लिए हैं....

फिर जैसे आएँ थे
वैसे ही चले गए....

उन्हें क्या पता ये बूंदे मेरी आँखों में रहती हैं
चाहे जब बिन बदली बरसती हैं।।
"

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

कुछ अहसास...


" कुछ अहसास ओस की बूंदो के जैसे
करते है रुह को ताजा ...

कुछ अहसास ठंडी हवा की तरह
देते हैं मन की अगन को सुकून...

कुछ अहसास भीगे होठों की तरह
भरते हैं बंजर जमी में नमी...

कुछ अहसास प्रेम की बूँदों के जैसे
आंखों से बहने से पहले संभल जाते हैं...

गिर के जमी पर होगी उनकी रुसवाई
इसलिए आँखों में इन मोतियों को छुपा लेती हूँ।।"


(इन अहसासों को मन के कंदराओं में कहीं छिपा कर रखा है..लेकिन लाख छिपाने के बाद भी ये अहसास मेरे चेहरे की मुस्कुराहट में झलक जाते हैं...)